Wednesday, October 20, 2021

शत्रुंजय गिरिराज के समान तीर्थ नहीं

आगर मालवा। नमस्कार महामंत्र के समान कोई मंत्र नहीं है। वितराग प्रभु के समान देव नहीं, वैसे ही शत्रुंजय गिरीराज समान तीर्थ नहीं, जो तारे वह तीर्थ कहलाता है। जगत में पर्वत गिर अनेक हैं, लेकिन आत्मा की उधाता के लिए भावों की धारा को ऊपर चढ़ाएं, उस धारा को चढ़ाने वाला सिद्घ गिरिराज एक है।

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