वेतन सिर्फ ढाई हजार, लेकिन स्कूल को संवारने की लगन थी तो गांव में दो-दो रुपये लोगों से चंदा कर साढ़े सात हजार जुटाए। काम शुरू किया तो करीब डेढ़ लाख रुपये कर्ज हो गया। तब पत्नी ने कहा कि हार न मानो, मेरे गहने बेच दो।
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